हिंदी कविताएं २०२० | Poem of the month 2020 | Shubhra Paliwal
बड़ा ही सुन्दर पंडाल
और मुख्य द्वार पर बड़े-बड़े
अक्षरों में लिखा था –
नारी का सम्मान…….
पैरों की चाल धीमी पड़ गई,
और पहुंच गई, उस सुन्दर
विशाल पंडाल के मुख्य द्वार पर,
जो सुसज्जित था, विभिन्न
पुष्पों की सुगंध से..……
आहा ! कितना मनोरम दृश्य
नयनों में शीतलता भर दी थी ,
और हृदय अतिआनंदित ,
भावभिवोर हो उठा …..
चलो आज तो नारी को
सम्मानित किया जा रहा है-
उसके अनंत काल से किये
प्रत्येक कार्य के लिए…..
इस प्रकृति के उत्थान के लिए ,
इस जीवन के संचार के लिए ,
कण- कण में निहित प्रत्येक
जीव के विकास के लिए ,
प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष किए उसके
त्याग व बलिदान के लिए ,
बस इन्हीं भावों के साथ
प्रवेश कर गयी वह नारी
उस द्वार के भीतर ,
और…… ठिठकी रही ,
ना जाने कितने समय तक…..
सहसा , फिर जोर से हंसी ,
उन मूर्खो की विशाल गोष्ठी पर ,
जो ….. अब भी बस ,
विचार कर रहे थे ……..कि
हमें नारी का सम्मान करना चाहिए ।
तर्क- कुतर्क , और पाखंड
से भरे थे सब ,
नारी जोर – जोर से हंसी….
और निकल गई ।
नारी होना ही स्वतः सम्मान है।
तुम इन आडमबरो में उलझे रहो
जन्मों जनमानतर तक ,
ना तुम ये कभी कर सके हो ,
और ना ही कर सकोगे ,
बस छलते आये थे , और
छलते रहोगे ।
फिर भी ये आशीष है …..
सदा मेरी ही छत्र छाया में ,
पलते रहे थे ,पलते रहोगे ।
हिंदी कविताएं २०२० | Shubhra Paliwal




पत्थर से मिले, कांटों से मिले ,
फूलों से भरी,हर डाली से मिले
एक पंखुरी थी, तेरे इंतज़ार में,
क्यों तुम उससे ना मिले।
हर गली से गुजरे, नगर से गुजरे ,
राहों में मिले,हर मकान से गुजरे,
मेरा था जिस गली में ठिकाना ,
क्यों तुम वहां से ना गुजरे ।
खुशी से मिले,हर ग़म से मिले ,
पतझड़ से मिले , बहारों से मिले,
जो मौसम था रूमानी प्यार का,
क्यों तुम उससे ना मिले ।
अनजान से मिले, पहचान से मिले ,
राहों में भटकते, इंसान से मिले ,
जो हम थे क़रीब तेरी आस में,
क्यों तुम हमसे ना मिले ।
सर्दी से मिले , गर्मी से मिले ,
बरसात में तुम,बदली से मिले ,
तपती रही तपिश में, जो तेरे लिए
क्यों तुम उससे ना मिले ।
काग़ज़ से मिले,क़लम से मिले ,
स्याही से लिखे, फ़रमान से मिले,
जिस क़लम ने थी लिखी मेरी दास्तां ,
क्यों तुम उससे ना मिले ।
हिंदी कविताएं २०२० | Shubhra Paliwal




हर बार क्यों ठग सी जाती हूं मैं ,
तुमसे मिलकर, खुद को भूल जाती हूं मैं ।
कौन हूं मैं ? ……
तुम्हारी प्रेयसी ,या वह स्त्री ,
जो स्वच्छंद है अपनी पूरी आभा लिए ।
कौन हूं मैं ?……..
तुम्हारी बेटी , या वह लड़की ,
जो उन्मुक्त है अपने निर्णय के लिए ।
कौन हूं मैं ?………
तुम्हारी वधु , या वह नारी ,
जो सम्पूर्ण है , अपने ही आप
में ।
कौन हूं मैं ?………
बस एक मां , या वह औरत ,
जो सबला है , इस पूरे ब्रह्मांड
में ।
मैं उस स्त्री में छुपी, तुम्हारी
प्रेयसी हूं ,
जो स्वच्छंद होते हुए भी परतंत्र
हो जाती है ,
तुम पर प्रेम लुटाने के लिए ।
मैं उस लड़की में छुपी , तुम्हारी
बेटी हूं ,
जो उन्मुक्त होते हुए भी बंद
जाती है ,
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान के लिए।
मैं उस नारी में छुपी , तुम्हारी
वधु हूं ,
जो सम्पूर्ण होते हुए भी अपूर्ण
हो जाती है ,
तुमको पूरा करने के लिए ।
मैं उस औरत में छुपी , तुम्हारी
मां हूं ,
जो सबला होते हुए भी कमजोर
हो जाती है ,
तुम्हारे विस्तार के लिए ।
इसलिए हर बार ठग सी जाती
हूं मैं ,
तुमसे मिलकर खुद को भूल
जाती हूं मैं ।
हिंदी कविताएं २०२० | Shubhra Paliwal




सोचा नहीं था ,
इतना कुछ दे दोगे मुझे …
बड़ी डरपोक सी थी मैं ,
लुकी- छुपी सी ,
सहमी सी ,डरी सी ……
लेकिन तुम्हारी बढ़ती
जुर्रतें …… रोज़ रोज़ ,
मेरे डर को खाती गई…..
और मैं बन गई ,
निर्भीक ,निडर …..
सोचा नहीं था ……
बड़ी ख़ामोश सी थी मैं ,
झुकी नज़रें ,बचती – बचाती ,
हर दर्द सहती , कुछ ना कहती,
लेकिन तुम्हारी ज्यादती……
मेरा दम घोंटती रही ,
और निकलीं अनायास
वो चीख …….
जिसने ख़ामोशी को ,
हमेशा के लिए दबा दिया ।
और हो गई मैं ,
बिंदास ,बेबाक ….
मैंने सोचा नहीं था ……
अक्सर हम भूल जाते हैं उन्हें ,
जो बदल देते हैं हमारा पूरा
व्यक्तितव ….. और बढ़ा देते हैं ,
एक क़दम उन्नति की ओर …..
शुक्रिया ….. सदा उन्हें ,जो आते हैं हमारे जीवन में
एक और चोट करके हमें
गढ़ने के लिए …..




ना कर इज़हार लोगों में ,
तू अपनी मोहब्बत का नाम
ये ज़माना ही कर देगा यहां
सरेआम तुझको बदनाम ,
बहुत ही पाक़ , बहुत ही साफ़ ,
जैसे कोई आईना है ,
मोहब्बत इबादत ,मोहब्बत ईमान
मोहब्बत तो ख़ुदा है ।
ना ज़ाहिर कर लफ़्ज़ों में इसे ,
ना अश्कों में तू बहा ,
अश्कों में कहीं,ये बह ना जाये
हर क़तरा नूर – ए – वफ़ा है ।
बहुत खुश किस्मत है तू ,
तुझे तो ख़ुदा मिला है ।
अरे नांदा , किया जिसने ज़ाहिर
कब वो खुश रहा है ..
मोहब्बत उसकी रही ता क़यामत
जिसने दिल ही दिल में रखा है ।
अब भी वक़्त है , संभल जा ज़रा
मोहब्बत को तू ,यूं ना गा,
बहुत पाक़ीज़ा द़ामन मोहब्बत ,
जिसने भी ओढ़ा ख़ुदा का हुआ है ।
मेरा गुरू




जीवन के इस सफ़र में ,
जो सीख मुझको दे गया ,
वो ही गुरू मेरा बना ,
वो ही गुरू मेरा बना ।
फूलों ने मुझको सिखाया ,
कैसे दुःख में खुश रहें ।
पानी ने मुझको सिखाया ,
कैसे अपनी राह चुनें ।
पेड़ों ने मुझको सिखाया ,
कैसे विनम्र हम बनें ।
एक लौ ने मुझको सिखाया ,
कैसे अंधेरे से लड़ें ।
मां ने मुझको सिखाया ,
कैसे प्यार सबसे करें ।
पिता ने मुझको सिखाया ,
कैसे दुष्टों से लड़ें ।
भाई ने मुझको सिखाया ,
कैसे रक्षक हम बनें ।
दोस्तों ने मुझको सिखाया ,
कैसे रिश्ते सार्थक करें ।
अध्यापक ने मुझको सिखाया ,
कैसे सच की राह चलें ।
संत ने मुझको सिखाया ,
कैसे क्रोध पर संयम रखें ।
हरिजन ने मुझको सिखाया ,
कैसे मन का मैल,साफ़ करें ।
तपस्वी ने मुझको सिखाया ,
कैसे लक्ष्य पाने को,तप करें ।
जन्म ने मुझको सिखाया ,
कैसे जीवन हम जियें ।
मृत्यु ने मुझको सिखाया ,
कैसे सबका त्याग करें ।
हर पल हर क्षण है गुरु ,
गुरु की महिमा, हम कैसे करें ।
हिंदी कविताएं २०२० | Shubhra Paliwal
रेत हूं मैं
रेत हूं मैं……..
आकर बैठो तो कभी ,
बिन कहे चल दूंगी तुम्हारे साथ ,
तुम झाड़ोगे,तो भी रह जाऊंगी ।
रेत हूं मैं.. फिसल कर भी
छू जाऊंगी ।
खुश हूं ……
तुम्हारा सानिध्य मिला ,
तुमने उंगली घुमाई ,
और एक नाम लिखा।
छुपा लिया उसे मैंने
अपने आंचल में ,
सदा के लिए मिला लिया ,
अपने भावों में ।
रेत हूं मैं.. कभी हवा संग
मुझे उड़ाओगे , तो कभी
पानी संग बहाओगे ।
खुश हूं ….
तुम संग अंग- संग हुआ ,
तुम्हारे प्रेम में निकले अश्रुओं
ने, मुझे तृप्त किया ।
सुख-दुख, विरह- मिलन
को जी पाई ।
रेत हूं मैं …….
तुम्हारे ये सारे कर्ज चुका दूंगी,
जो कभी ठोकर लगी तो ,
नर्म बिस्तर हो , तुम्हें बचालूंगी ,
या जब तुम थककर मुझ
पर लेटोगे , ठंडी-ठंडी
चादर अपनी ओढ़ा दूंगी ।
रेत हूं मैं
हिंदी कविताएं २०२०




कभी खुशी , कभी ग़म
है मोहब्बत ,
ना जाने ये , कैसी है ,
मोहब्बत ,
बहुत सोच कर कुछ ,
मैंने लिखा है ,
तभी नाम # रंग ए मोहब्बत #
दिया है ।
एक पागल पवन मस्त होकर
चली ,
रंग लोगों से मांग कर , कहने
लगी ,
मोहब्बत को मैं सजाऊंगी ,
दुल्हन के जैसा बनाऊंगी ।
मैं तो हूं पागल , क्या है भरोसा ,
कब इस जहां से,उठ जाये डेरा ,
अभी हूं तो कुछ ऐसा कर जाऊं ,
कि मरके भी मैं याद आऊं ,
इसलिए हूं निकली झूमती गाती ,
मांगती रंग , और कहती जाती –
मोहब्बत को मैं सजाऊंगी ,
दुल्हन के जैसा बनाऊंगी ।
सबसे मिली ,पर ये क्या हुआ ,
कोई तो हंसा , कोई रोता रहा ,
कोई बन्द आंखें, ये कहता रहा –
मोहब्बत सज़ा है, मोहब्बत सज़ा,
किसी होंठों से ,निकली ये बातें –
मोहब्बत तो , ख़ुदा की है राहें ,
कोई हाथ लेकर ये एकतारा गाता
मोहब्बत की बातों में ना आना ,
मोहब्बत तो बेवफ़ा है यारों ,
एक दिन तुमको ठुकरयेगी ,
अभी तो गले से लगाया है तुमको
कल रोता हुआ छोड़ कर जायेंगी
मैंने उसके इतने देखे रंग ,
खुद देख कर मैं यह गयी दंग ।
अब तो समझ में कुछ भी ना आए ,
मोहब्बत को कहा क्या जाये-
बड़े अरमानों से मैं निकली थी,
रंग लोगों से मांग कर कहती थी,
मोहब्बत को मैं सजाऊंगी ,
दुल्हन के जैसा बनाऊंगी ।
तू तो खुद इतने रंगों में रंगी है ,
तुझे और किस रंग की कमी है ,
तुझे इतने रंग में उसी ने जाना ,
मोहब्बत में तेरी हुआ जो दीवाना
मैं अब कभी ना कहीं जाऊंगी ,
ना लोगों से रंग मांगकर गाऊंगी,
मोहब्बत को मैं सजाऊंगी ,
दुल्हन के जैसा बनाऊंगी ।
Written by_Shubhra Paliiwal
Read More Poems of Shubhra Paliwal cliick here _Hindi Poems By Shubhra