Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
आत्महत्या
दिख जाता है , कभी कहीं….
जब शरीर पंखे से झूलता…
या , रिस्ता हुआ खून ,
हाथों की नसों का…..या ,
छिप्त ,विछिप्त पटरी पर पड़ा ,
क्या बस तभी होती है ,
आत्महत्या …..?
क्या किसी के सपनो को
तोड़ देना …..
खुद के स्वार्थ ,पूरे करने हेतु ,
उसे रोक देना ….
तब क्या नहीं होती है ,
भावनाओं की आत्महत्या…?
एक स्त्री से गर्भपात करवाना ,
फिर उससे झूठे आडम्बर रचवाना.…..
तब क्या नहीं होती है ,
ममता की आत्महत्या…..?
पुरुष पुरुष कहकर उसे चढ़ाना ,
तुम रो नहीं सकते ,बस यही
समझना ……
तब क्या नहीं होती है ,
संवेदनाओं की आत्महत्या…..?
अरे भाई! घोर कलियुग है ,
ये स्वार्थ ,लोभ ,पाप से भरा
युग है …
मरने दो , वो जो सब मरते हैं ,
सर्वोपरि तो ,बस अपना सुख है,
तब क्या नहीं होती है ,
इंसानियत की आत्महत्या….?
कितना कुछ लिखकर भी
रह जाता है ,
एक कवि दबे शब्दों में ही
कुछ कह पाता है ,
क ई बार उसकी क़लम पर ही ,
प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं ,
या , उसके लेख दुनिया से
छुपा दिये जाते हैं ,
तब क्या नहीं होती है ,
एक लेखिनी की आत्महत्या…?
यह विषय बहुत विस्तृत
और गहन है ,
हां… सत्य है , ये प्रश्न भी तो
उठाता मेरा ज़हन है ,
मैंने हर तरफ़ होती देखी है ,
ये आत्महत्या …
बस…. यहां शरीर नहीं मरता ,
होती है तो , बस हत्या ,
आत्मा की हत्या .. आत्महत्या ।
सिर्फ और सिर्फ ,
आत्महत्या……
समय
उफ़ ! कितना बोझ है ,
तुम्हारे ऊपर,
आओ ,तनिक बैठो न ,
रख दो ये गठरी ,सिर से
उतार कर ,
कितने अस्त – व्यस्त से
लगते हो ,
माथे पर गहरी- गहरी रेखाएं…..
आंखों में गहरी उदासी
शरीर में शिथिलता ….
तुम कभी थकते तो न थे ,
सुख-दुख ,लाभ – हानि से
परे थे तुम ,
हां , सही कहा मित्र ,
मैं समय हूं …
और यही मेरी व्यथा भी है ,
और विडंबना भी,
कि चाह कर भी , मैं…..
कभी रुक नहीं सकता ,
न हंस सकता हूं ,
न रो सकता ,न थम सकता हूं ,
न सो सकता हूं ,
बस देखता रहता हूं …..
निर्जीव सा ….. असहाय ,
बेबस , लाचार …..
पर तुम तो इंसान हो ,
फिर क्यों ? रुक जाते हो ,
थक जाते हो ,
तुम्हारा यह हार मान जाना ,
मुझे निर्जीव कर देता है ,
तुम्हारे लिए चलता रहता हूं ,
मैं …. निरन्तर ,
आदि से अनन्त , पर…
तुम बैठ जाते हो ,
और तुम्हारी गठरी मेरे
सिर पर आती जाती है ,
इसलिए उठो ! और चलो ,
बस चलते चलो …..
कभी मक़सद , तो
कभी बेमक़सद……
तुम्हारा मित्र समय ।
ज़िन्दगी
कभी इस क़दर भी छूटेगी ज़िन्दगी ,
मिलके मुझसे फिर रूठेगी
ज़िन्दगी ,
अब कहने से भी, क्या रहा
फ़ायदा ,
टुकड़े – टुकड़े सी टूटेगी ,
ज़िन्दगी ,
तेरे आंसू की बनके एक लहर
समन्दर में नाव सी डूबेगी
ज़िन्दगी ,
तुझको पाने की ख़ातिर ए मेरे
कंवल ,
बनके फिर एक कली , फूटेगी
ज़िन्दगी ,
लिखने वालों ने लिखी हज़ारों
दास्तां ,
फिर भी स्याही के मानिंद सूखेगी
ज़िन्दगी ,
ज़ाम कितने भी ग़म के पी
जाइये ,
ता उम्र फिर भी प्यासी बीतेगी
ज़िन्दगी ,
एक दर्द सा है ,हर लम्हा ,हर
नज़र ,
आखिर मौत के आगोश में ठहरेगी ज़िन्दगी ,
फिर से बनाना है , उसे कल
एक नया ,
शायद उम्मीद है कि फिर दौड़ेगी
ज़िन्दगी ,
वक़्त के साथ- साथ , यूं ही चलेगा दस्तूर ,
गिरती, चलतीं सी , यूं ही बीतेगी
ज़िन्दगी ।
Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
आस
जीवन और मृत्यु के बीच हुई एक बात ,
ऐसा क्या है जो बुझती नहीं आखरी स्वास तक,
मृत्यु ने कहा ,
मुझ तक पहुंचने से पहले एक डोर जिसे थाम चलता है इंसान
वो है .. आस ।
वो किसान , जो हर बार बोता है बीज ,
लाख मेहनत करने पर भी होता है विफल,
परिणाम स्वरूप फल ना आने पर भी नहीं छोड़ता, आस..
और फिर करता है प्रयास ।
वह गरीब जिसका बह जाता है घर बाढ़ में ,
और हो जाता है खाली हाथ,
फिर भी नहीं छोड़ता आस ,
दोबारा रचता है इतिहास और बेहतर करता है प्रयास।
एक स्त्री जो हर बार छल जाती है , भावनाओं के आवेग में ,
थक जाती है पर नहीं छोड़ती आस… रखती है हर पल और ताकत से अपना वजूद करती है सबकी संभाल।
एक युवा नहीं देखता व्यवधान,
अपने लक्ष्य पर अडिग,
लाख असफलताओं में भी,
नहीं छोड़ता आस…
अनवरत करता है प्रयास।
जीवन व मृत्यु के बीच में,
जब युद्ध होता है स्वांस का ,
व्यक्ति नहीं छोड़ता आस..
जीवंतता का यही है प्रयास।
जन्म से मृत्यु के बीच,
आस की यह डोर ,
सदा रही है खास ,
आस है तो, सांस है,
जीवन को जीवंत करती,
ये दिन रात है ।
लिख दो न..
आज कुछ लिखने का दिल
नहीं ,
तुम लिख दो न ।
महसूस कर के मुझे बस,
मुझे लिख दो न ।
लिख दो वो बातें , जो हैं ,
अधरों पे रुकी ,
बिन कहे ,सब तुमने सुनी ,
वो लिख दो न ।
मेरे पलकों के उठने , गिरने से,
जो ख़्वाब मिले हैं ,
तुमको शाने पे तुम्हारे ,
उन ख़्वाबों की ताबीर ,
तुम लिख दो न ।
मेरे झूठ में भी छिपे हैं ,
एहसास तुम्हारे ,
न जाने किस डोर से बंधे हैं,
ये दिल हमारे ,
इस झूठ से जुड़ धागों का ,
सच लिख दो न ।
सिर से पांव तक,मेरा ही
जो अक़्स तुम हो ,
तों सुनो , आज ख़ुद को ही ,
तुम लिख दो न ।
मैं, तुम और तुम , मैं , तो
क्यों ये कशमकश है खड़ी ,
सारी हटाकर दीवारें ,बस ये
हम लिख दो न
स्त्री
कितने रंग , कितने सांचे ,
कितने भाव…….
और अलग-अलग तरह,
की मिट्टी …..
वो गढ़ने बैठा था मुझे ,
पागल था शायद…….
अपने हिसाब से चाहता था,
मेरा रूप , मेरा रंग ,
मेरा स्वभाव ,मेरा आकार …..
और… शायद इसीलिए ,
आज तक लगा हुआ है ,
निरन्तर……
अथक , मगर निरर्थक ,
प्रयास में ………
एक स्त्री का अट्ठाहस……
एक पुरुष पर ।
Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
जाने दो, तुम नहीं समझोगे
जाने दो, तुम नहीं समझोगे…
कहकर सदा चली जाती थी वो,
और वो, फिर धीरे से मुस्कुरा देता था ।
जब देखता सूखती उसकी साड़ी आंगन में ,
और उसमें लगा तुरपाई का पैबंद या सुराख,
तो रख देता था , चुपचाप से लाकर अगले दिन ,
कोने की मेज पर एक नई सूती साड़ी हौले से,
और वो फिर धीरे से मुस्कुरा देता था ।
जाने दो, तुम नहीं समझोगे..
कहकर सदा चली जाती थी वो ,
आंगन में,रात्रि को जब लगाती थी बिस्तरे ,
और झलती थी पंखा,उस पर व
बच्चों पर ,
झुंझलाती हुई ,जब बड़बड़ाती
थी वो , उफ़!!
दिन में काम और रात में मुंए
मच्छर …..
तो चुप उठके, वो कंडा जला
देता था ,
और वो फिर धीरे से मुस्कुरा देता
था ।
जाने दो , तुम नहीं समझोगे…
कहकर सदा चली जाती थी वो ,
सारे घर के काम बस मुझे ही
करने पड़ते हैं ,
रोटी,कपड़ा,चौंका चूल्हा, बर्तन सब ….
मेरी ही तो जिम्मेदारी है,थकती
कहां बेचारी है ,
तो एक गर्म चाय की प्याली उसे
पकड़ा देता था ।
और वो फिर धीरे से मुस्कुरा देता था ।
कुछ अजीब ही था दोनों के प्यार
जताने का तरीका ।
जीवन के हर पड़ाव में साथ निभाने का तरीका ।
बिन बोले, इशारों में समझ जाने
का तरीका ।
किसी के रूठने, तो किसी के
मनाने का तरीका।
जिम्मेदारियों को अपने निभाने
का तरीका ।
जाने दो, तुम नहीं समझोगे, में
समझ जाने का तरीका।
मुस्कुरा के उसकी हर ख्वाहिश
पूरी करने का तरीका ।
Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
कुछ कुछ उलझनों में ,उलझी हुई सी मैं ,
प्रश्नों और उत्तरों में, लिपटी
हुई सी मैं ।
ढूंढ रही हूं छोर , कोई तो सिरा
मिले ,
अंधेरे को चीरता हुआ ,रौशन दिया मिले ,
हूं अगर मैं ग़लत , तो भी तुझको
कुबूल हूं ,
मुझ सा ही ग़लत , कोई मुझको
ज़रा मिले ।
कुछ कुछ उलझनों में , उलझी
हुई सी मैं ,
प्रश्नों और उत्तरों में , लिपटी
हुई सी मैं ।
दो क़दम ही सही ,झूठ के ना
पांव हों ,
फरेबों के शहर में , एक सच का
गांव हो ,
उघड़ा हो या ढ़का , जिस्मों का
है क्या ,
रूह तक उतरने वाला , कोई
इंसान हो ।
कुछ कुछ उलझनों में , उलझी
हुई सी मैं ,
प्रश्नों और उत्तरों में , लिपटी
हुई सी मैं ।
सिर पर कफ़न बांधे , चलते
रहे थे वो ,
मज़बूरी.. घर में लानी थी ,
रोटी बस दो ,
सिर से पांव तक , बेचा किये
सनम ,
राजा हैं उनके दिल के , पापा
कहते हैं जो ।
कुछ कुछ उलझनों में , उलझी
हुई सी मैं ,
प्रश्नों और उत्तरों में , लिपटी
हुई सी मैं ।
नियम अज़ब बने हैं , अब हर सूं
ज्ञान के ,
आंग्लभाषा जो बोले, सम्मानित
आज से ,
डरी, सहमी,बंधी खड़ी है, प्रान्त
देश की भाषा ,
तोड़ो बन्धन, और बोलो ,इसको
शान से ।
कुछ कुछ उलझनों में , उलझी
हुई सी मैं ,
प्रश्नों और उत्तरों में , लिपटी
हुई सी मैं ।
प्रकृति ने ना लगाये , हम पर कोई भेद
हमने ही किन्नरों को , कैसे दिया
छेक ,
हम दास हैं, नहीं राजा प्रकृति के
राज्य के ,
मौलिक अधिकारों पर फिर क्यों
उनसे है द्वेष।
कुछ कुछ उलझनों में , उलझी
हुई सी मैं ,
प्रश्नों और उत्तरों में , लिपटी
हुई सी मैं ।
Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
गढ़ रहे थे ना ,जब वो हम दोनों को,…
उन्होंने हमारी तक़दीरों को भी
साथ गढ़ दिया ,
एक सिक्के के दो पहलू बनाकर
साथ मढ़ दिया ।
यूं मिलाया हैं कि अब बिछड़ेंगे
ना हम कभी ,
फिर भी तुझको मुझसे जुदा यार
कर दिया ।
तेरे दीदार को तरसता रहूंगा,
मैं उम्र भर ,
तमाम उम्र मुझे तेरा , यूं तलबगार कर दिया।
सुकून दिल को मेरे , फिर भी
है यार सुन ,
सिर्फ मेरा ही ,मेरा तुझे, मेरे
यार कर दिया ।
तेरा एहसास, मेरे एहसास से
जुदा अब नहीं ,
यूं हिज़्र के सूखे रेगिस्तान को ,
गुलज़ार कर दिया।
दूरियां दिलों की मिटाकर तो देखो एक बार ,
रास्ते ये, दुनियां जहां के छोटे
हों जायेंगे ।
खानाबदोशों से , अभी हम भी हैं ,रहगुज़र ,
ज़मीन को तकिया , बनाकर के
सो जायेंगे ।
फूलों के मानिंद ,महक लेंगे,
हम कभी ,
तो कहीं छूते ही , लबों को ,
दुआ हो जायेंगे।
तेरी पेशानी पे चमकते,नूर ए
क़तरे की क़सम ,
ज़मीं पर जो गिरे तो , सूरजमुखी
हो जायेंगे ।
फ़कत हमारा भी, ये रखना
तुम ख्याल ,
जो ना मिले तुम , तो फिर धुंआ
हो जायेंगे ।
मैं गिर जाती हूं …..
सहज निमंत्रण स्वीकार करूं तो, क्या मैं,गिर जाती हूं ,
मित्र समझ कर हाथ धरूं तो ,
क्या मैं, गिर जाती हूं ,
खुद से हो आगे बात करूं तो ,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
सच से अपनी बात रखूं तो ,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
बिन पूछे तुझ संग साथ चलूं तो,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
फिर से प्रेम की आस रखूं तो,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
तुमको जानने की बात करूं तो,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
जीवन भर जो राह तकूं तो ,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
स्वतंत्र सोच की राह चुनूं तो ,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
यदि पुरुष को मित्र चुनूं तो,
क्या मैं गिर जाती हूं ,
स्त्री हूं ,बस यही बात रखूं तो,
क्या मैं गिर जाती हूं।
Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
शब्दों के धनुष पर ,
जब क़लम चढ़ाती है प्रत्यंचा ,
और उठाती है तीर…..
प्रेम के , विश्वास के ,
विछोह के , अधिकार के ,
न्याय के , अन्याय के ,
सामाजिक ,असामाजिक
पर्याय के ,
राजनैतिक आघात के ,
विश्व के कल्याण के ,
मन में उपजी कुंठाओ के ,
असमानताओं के , विज्ञान के ,
ना जाने कितनी विडम्बनाओ के,
तो भेद क्यों नहीं पाती …….
उन हृदयों को , जो
मानुष से प्रतीत होते हैं ।
पाषाण काल में भी तो
चले होंगे ये तीर …….
संवेदनाओं को जगा ,
क्या नहीं किया था कोई विकास,
फिर सतयुग , त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ……
क्या शब्दों के धनुष पर,तब
ना चढ़ाई थी क़लम ने प्रत्यंचा,
और नहीं उठाए थे, ये सारे तीर,
नहीं भेदे थे क्या ये हृदय,
और नहीं जगाई थी एक क्रान्ति ,
क्या नहीं रचे थे ,
गौरव गाथाओं से पन्ने …….
इस कलियुग में भी तो , तुमने तीर चलाये थे ,
क्रांति के नये बिगुल बजाये थे ,
अत्याचारों पर रोक लगाई थी,
सती प्रथा भी तो रुकवाई थी ,
दहेज़ प्रथा पर भी तो कानून
लाये थे , बलात्कारियों पर
भी नये फैसले आए थे ,
फिर भी………..
क्या अब शब्दों के धनुष
पुराने हो गए हैं , या……
क़लम तुम्हारी प्रत्यंचा में ,
वो अब धार नहीं ,
या , मशीनी युग में ,
तुम भेद सको हृदय को ,
वो तीरों में तुम्हारे,जान नहीं ,
या… तुम सब तो,
अब भी वही हो ,
हम हीं अब वो इंसान नहीं ।
Collection of Best Hindi Poems | Poem by Shubhra Paliwal |
प्रेम देखा नहीं कोई , तुम्हारे जैसा ….
तुम छूलो जिसको , ना रहे वो
पहले जैसा ।
तुम जो छूलो धरती ,
जो बंजर सी दिखती ,
अंकुर फूटे, खुशी के ,
हों जाये उपवन जैसा ।
नदी , झरने फूटे, वृक्षों
की लहरायें लतायें ,
वन्य जीव खेलें, हो जाये…
जंगल में मंगल जैसा ।
प्रेम देखा नहीं कोई , तुम्हारे
जैसा ,
तुम छूलो जिसको ,ना रहे वो
पहले जैसा ।
तुम जो छूलो गगन को ,
तो मेघ बनके उमड़े ,
सारी धरा पर , फिर वो
छम-छम बरसे ।
विषैली हवायें , फिर
धुल कर मुस्कुरायें ,
वातावरण हों जाये ,
स्वर्ग के जैसा ।
प्रेम देखा नहीं कोई , तुम्हारे
जैसा ,….
तुम छूलो जिसको ,ना रहे वो
पहले जैसा ।
तुम जो छूलो इंसान को ,
वो ख़ुदा हो जाये ,
अपने ही अहम से ,
वो जुदा हो जाये ।
लिखे वेद , उपनिषद ,
विश्व कल्याण में वो ,
दे , ज्ञान अनंत …
रामायण , गीता जैसा ।
प्रेम देखा नहीं कोई , तुम्हारे
जैसा ,
तुम छूलो जिसको ना रहे वो
पहले जैसा ।
Written by_ शुभ्रा पालीवाल



