-: क़ैफ़ियत :-
बड़ा गुरूर है खुद पे खुदा के बन्दों को,
बेहिसाब आरज़ू लिए ये दर-दर भटकते हैं,
शानो-शौकत की अज़ीज़ चाह हैं इन्हें,
अपनों से ही बेखबर हर पल ये रहते हैं,
अब तो लोग सिर्फ़ दौलत का ही हिसाब रखतें हैं,
क़ैफ़ियत और ख़ैरियत भी मतलब से पूछते हैं।
ना जाने क्यों इतनी शिकवा है इन्हें,
अपनों को ही रुसवा ये करें,
मोहब्बत का ये इल्म नहीं जानते,
पर बातें बड़ी-बड़ी हैं करतें,
ये दोस्त क्या बनाएंगे जनाब, इनसे अपने ही रिश्ते नहीं संभलते।
रुपयों का नशा बड़ा भारी हैं,
बेहिसाब चाहत ने भला किसकी जिंदगी संवारी हैं,
मौत के दरवाज़े पे खड़ा व्यक्ति भी हिसाब ही करता हैं,
औलादों के नाम अपनी वसीयत लिखता हैं,
बड़ी निराशा की बात है ये रिश्तों की क़ीमत नहीं समझते ,
पाई-पाई का हिसाब ना हो तो एक दूसरे पे हैं बिगड़ते,
अब तो लोग सिर्फ़ दौलत का ही हिसाब रखते हैं,
क़ैफ़ियत और ख़ैरियत भी मतलब से पूछते हैं।
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_अनुराधा रानी




Very true